Sunday 22 June 2014

अंतिम सांस खींच रही मशीन को ‘हुमाद’ देकर बचाने का प्रयास



पटना।राजधानी में तीन जगहों पर विघुत शव दाह गृह है। वह है बांसघाट , गुलबीघाट और खाजेकला। पटना नगर निगम के द्वारा बांसघाट में दो और शेष जगहों पर एक मशीन लगायी गयी है। बांसघाट में 20 साल पहले विघुत शव दाह गृह का निर्माण किया गया। कहने को बांसघाट में 2 मशीन लगायी गयी है। वास्तव में एक ही मशीन से काम निकाला गया। तब समझा जा सकता है कि चालू मशीन पर कितना दबाव पड़ता होगा। बेहतर ढंग से रखरखाव नहीं होने के कारण मशीन अंतिम सांस खींच रही है। इसे बचाने के लिए ' हुमाद ' दिया जाता है।
पंचतत्व में विलिन करने वाली मशीन की तरफ ' पंच ' की नजर नहीं:  पटना नगर निगम के क्षेत्र में विघुत शव दाह गृह है। राजधानी के तीन विघुत शव दाह गृह को जीर्णोद्धार करने के लिए 2 करोड़ रू . दिए गए है। मजे की बात है कि पटना नगर निगम के द्वारा 50 हजार रू . में मिलने वाले एलिमेंट की एक सेट खरीद नहीं की जा रही है। एक सेट में 12 एलिमेंट रहता है। फिलवक्त बांसघाट में 12 एलिमेंट में 3 एलिमेंट से काम चलाया जा रहा है। 9 एलिमेंट परलोक सिधार चुका है। इस ओर पटना नगर निगम के ' पंचों ' और अधिकारियों का ध्यान भंग ही नहीं हो रहा है।
अंतिम सांस खींच रही मशीन को ' हुमाद ' देकर बचाने का प्रयासः   मात्रः 3 एलिमेंट से शव जलाया जा रहा है। जब 12 एलिमेंट कार्यरत था , तो 30 मिनट में शव राख हो जाता था। 9 एलिमेंट खराब हो जाने के कारण मशीन में ' हुमाद ' डाला जाता है। 5 किलोग्राम ' हुमाद ' और 3 एलिमेंट की शक्ति से 45 मिनट में शव जल पा रहा है। बताते चले कि विघुत शव दाह गृह से शव जलाने के लिए बतौर 300 रू . शुल्क लिया जाता है। अब परिजनों की जेब से 200 रू . व्यय करवाकर 5 किलोग्राम ' हुमाद ' खरीदवाया जाता है। शव रखने के लिए लकड़ी का फेम 100 रू . में खरीदा जाता है। इस तरह 6 सौ रू . खर्च करना पड़ रहा है।
तीन शिफ्ट में चलने वाले विघुत शव दाह गृह में दो ही ऑपरेटरः  हमलोग 3 ऑपरेटर थे। 8 घंटे का शिफ्ट था। एक ऑपरेटर के अवकाश ग्रहण करने के बाद ऑपरेटर को बहाल ही नहीं किया गया। दो ही ऑपरेटर से तीन शिफ्ट का कार्य लिया जाता है। उसी में बीमारी और विभिन्न तरह की छुट्टी भी शामिल है। अन्य व्यक्ति को भेजकर कार्य नहीं करवाया जाता है। एक ही व्यक्ति के तरह - तरह का कार्य करवाया जाता है। जान जोखिम में है। चिमनी खराब होने के कारण धूंआ विघुत शव दाह गृह में ही पसर जाता है। उसी धूंआ को ग्रहण करना पड़ता है। आजकल 25 से 30 शव जलाया जाता है। बरसात के समय 100 लोगों को जलाया जाता है। दीघा , दानापुर आदि जगहों के लोग भी शव को जलाने लाते हैं। जबतक गंगा किनारे जगह रहती है। तब अपने स्थल पर शव को जला लेते हैं। ऑपरेटर को मिलने वाले सुरक्षात्मक कवच नहीं है। एक बार देने के बाद अधिकारी विश्राम करने लगे हैं।
मशीन खराब होने के बाद ' डोम राजाओं ' को चांदीः   मशीन खराब हो जाने के बाद लावारिश शव को ' डोम राजाओं ' के हाथ में सौंप दिया जाता है। डीएम के पास से लावारिश शव को जलाने के लिए 3 सौ रू . विमुक्त किया जाता है। इस राशि को लेकर ' डोम राजाओं ' के द्वारा गाड़ी के टायर और अन्य चुने लकड़ियों से जला दिया जाता है। अर्द्ध जले शरीर को नाले में फेंक दिया जाता है। लावारिश लाश को लावारिश कुत्तों का निवाला हो जाता है। साधारण लोगों को शव जलाने में 7 हजार रू . में लकड़ी और 500 रू . में ट्रैक्टर वालों को भाड़ा देकर गंगा किनारे लिया जाता है। मुखाग्नि देने वाले ' डोम राजाओं ' को एक से तीन सौ रू . देना पड़ता है। तब जाकर परिजन को पंचतत्व में विलिन कर पाते हैं। अब आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है। ऐसा हो कि विघुत शव दाह गृह ठप पड़ जाए।

 Alok Kumar

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