इसमें पब्लिक स्कूलों के होते हैं
अधिकांश बच्चे
जिला प्रशासन स्मैक के धंधाबाजों पर
लगाम लगाए

ऐसे बच्चे एकांत जगह पर मिलते हैं।
यह सब मोबाइल के माध्यम से जगह तय कर दी जाती है। माल यानी स्मैक मिल जाने के बाद
बच्चे जाते है। स्मैक पीते हैं। समय पर घर भी आ जाते हैं। अगर घर बच्चे नहीं आना
चाहते हैं। तो अभिभावकों को मोबाइल से खबर दें देते हैं कि आज दोस्त का बर्थ डे
हैं। दोस्त के ही घर पर ठहर जाएंगे। धीरे-धीरे आदत बना डालते हैं। स्मैक पीने के
लिए अभिभावकों के साथ छल भी करने लगते हैं। घर के समान लाने के नाम पर अधिक रकम
मांग करते हैं। कुछ-कुछ घर का समान बेचने भी लगते हैं।
आज पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर
नेहरू जी की 125 वीं जन्म जयंती के अवसर पर
अभिभावकों, स्कूल,सामाजिक संगठनों का दायित्व बनता है कि राह से भटक गए बच्चों को सही मार्ग
पर ले आए। ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है। जहां बच्चे स्वयं को अकेला महसूस नहीं
करें। प्यार और मोहब्बत से बच्चों को समझा और बुझाकर बुरी लत से मोहभंग करा दें।
वहीं पुलिस प्रशासन का कर्तव्य बनता है कि अपने कार्य क्षेत्र में स्मैक के
धंधाबाजों पर लगाम लगा दें। बच्चों की जिदंगी बर्बाद करने वाले स्मैक के सौदागरों
पर मजबूती से लगाम लगा दें। ऐसा करने से पुनः धंधा नहीं करेंगे।
आलोक कुमार
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