Friday 14 November 2014

स्कूल के दिनों से ही बच्चे स्मैक की लत में फंस जाते?


इसमें पब्लिक स्कूलों के होते हैं अधिकांश बच्चे

जिला प्रशासन स्मैक के धंधाबाजों पर लगाम लगाए

पटना।दीघा थाना क्षेत्र में स्मैक बिकता है। थानाध्यक्ष की जानकारी में अवैध धंधा फल-फूल रहा है। स्मैक सौदागरों का सेफ जॉन दीघा क्षेत्र बन गया है। कुछ बच्चों के सहारे स्मैक के सौदागर स्कूली बच्चों तक पहुंचने और जाल में फांसने में सफल हो गए हैं।इसमें फंसकर मध्यम वर्ग के बच्चे बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं। इन बच्चों के मां-बाप कार्य करने में व्यस्त रहते हैं। अभिभावकों के द्वारा काम करने के बाद प्राप्त रकम को पब्लिक स्कूलों की थैली में डालते ही रहते हैं।अभिभावकों के द्वारा विविध प्रकार के आयोजनों में मोटी रकम डकारने वाले पब्लिक स्कूलों के अधिकारी बच्चों पर ध्यान ही नहीं देते हैं। स्कूल में जाने और आने के समय में धुम्रपान करते हैं।

 गुलाबी धुंआ को ग्रहण करके बच्चे सपना देखते ही रहते हैं। बच्चे अध्ययन करने के लिए घर से निकलते हैं। उसके बाद गलत राह में भटक जाते हैं। स्मैक के धंधाबाजों के द्वारा नियुक्त बच्चे स्कूली बच्चों को स्मैक पीने की लत लगा देते हैं। जब बच्चे पूर्णतः डूब जाते हैं। तो वहीं बच्चे अन्य बच्चों को नेट वर्क बना लेते हैं। एक स्कूल से दूसरे स्कूल के बच्चों के बीच में स्मैक का प्रसार और प्रचार किया जाता है। देखते ही देखते दर्जनों बच्चों की टोली बन जाती है। आज एक वंदा तो कल दूसरा शख्स स्मैक खरीदकर लाता है। और सभी लोग मिलकर पीते हैं। ऐसा करने से बारी-बारी से सभी बच्चों की पारी आती रहती है।



ऐसे बच्चे एकांत जगह पर मिलते हैं। यह सब मोबाइल के माध्यम से जगह तय कर दी जाती है। माल यानी स्मैक मिल जाने के बाद बच्चे जाते है। स्मैक पीते हैं। समय पर घर भी आ जाते हैं। अगर घर बच्चे नहीं आना चाहते हैं। तो अभिभावकों को मोबाइल से खबर दें देते हैं कि आज दोस्त का बर्थ डे हैं। दोस्त के ही घर पर ठहर जाएंगे। धीरे-धीरे आदत बना डालते हैं। स्मैक पीने के लिए अभिभावकों के साथ छल भी करने लगते हैं। घर के समान लाने के नाम पर अधिक रकम मांग करते हैं। कुछ-कुछ घर का समान बेचने भी लगते हैं।
आज पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर नेहरू जी की 125 वीं जन्म जयंती के अवसर पर अभिभावकों, स्कूल,सामाजिक संगठनों का दायित्व बनता है कि राह से भटक गए बच्चों को सही मार्ग पर ले आए। ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है। जहां बच्चे स्वयं को अकेला महसूस नहीं करें। प्यार और मोहब्बत से बच्चों को समझा और बुझाकर बुरी लत से मोहभंग करा दें। वहीं पुलिस प्रशासन का कर्तव्य बनता है कि अपने कार्य क्षेत्र में स्मैक के धंधाबाजों पर लगाम लगा दें। बच्चों की जिदंगी बर्बाद करने वाले स्मैक के सौदागरों पर मजबूती से लगाम लगा दें। ऐसा करने से पुनः धंधा नहीं करेंगे।


आलोक कुमार

No comments: