Friday 20 February 2015

विश्वासमत प्राप्त करने के पहले ही मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने दिया इस्तीफा

विश्वासमत प्राप्त करने के पहले ही मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने दिया इस्तीफा 
राज्यपाल भवन पहुंचे नीतीश कुमार
पटना। आखिरकार महादलित मुख्यमंत्री  जीतन राम मांझी ने इस्तीफा दे दिया।पिछले 7 दिनों से इस्तीफा देने और लेने की खेल समाप्त हो गयी। इसके साथ ही बिहार में ब्लैक फ्राइडे होते होते बच गया। बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के सामने विधान सभा में हंगामा होने लगा। इसको लेकर चितिंत अध्यक्ष ने विधान सभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। 
इधर मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस्तीफा देने के बाद भी कहते रहे कि उनके पास 40 से 50 विधायक साथ-साथ थे। मगर विधायक पर्दें में रहकर विश्वासमत व्यक्त करना चाहते थे। विधायकों में खौफ बरकरार था कि जान से मारने की धमकी दी जा रही है। विधायक, मंत्री और खुद मुख्यमंत्री को धमकी दी जा रही थी। विधायक रामेश्वर पासवान के घर में 10 लोग जाकर बैठ गए। इसी तरह अन्य विधायकों के साथ भी किया गया। लगातार यह भी धमकी दिया जाने लगा कि व्हीप से उलटकर वोट देने वाले विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। सदस्यता समाप्त करने के खिलाफ कोर्ट जाने पर 4 से 8 लाख रूपए खर्च हो जाता है। 
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि महामहिम राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी जी से आग्रह किए थे कि गुप्त मतदान से विश्वास मत प्राप्त करने की व्यवस्था कर दें।महामहिम ने कहा कि संविधान में यह प्रावधान नहीं है कि विधान सभा में गुप्त मतदान से विश्वास मत प्राप्त किया जा सके। इसके आलोक में विश्वासमत प्राप्त करने के पहले ही इस्तीफा दे दिया।
बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने सदन में सदस्यों को बैठने की व्यवस्था नहीं कर सके। विरोधी दल के नेता नन्दकिशोर यादव का नाम नहीं था। पता नहीं चल रहा था कि विधायक किधर बैठेंगे। अध्यक्ष महोदय विवेक से कार्य करते है? या किसी के कथनानुसार कार्य करते हैं।लगातार विधायकों,मंत्रियों के साथ मुझे भी जान से मारने की धमकी दी जाने लगी। ऐसा लग रहा था कि मेरे पक्ष में विश्वासमत देने वाले विधायकों को फजीयत हो रही है। उनकी जान और विधायकी सलीब पर लटकने वाली है। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि जबतक नीतीश कुमार का कठपुतला बना रहा,तबतक ठीक था। जैसे ही उनके आदेशानुसार कार्य पर अंकुश लगाने लगे तो खिलाफत पर उतर गए। स्पष्ट कहा कि रबड़ स्टांप की स्थिति थी। किसी तरह के संशोधन किए ही आदेश पर हस्ताक्षर करना पड़ता था। अधिकारियों का स्थानान्तरण हो अथवा कोई भी आदेश को मानना ही पड़ता था। जब राज्य कोष से राशि की बंदरबांट होती थी। तब बहुत ही दुख लगता था। उसको नियंत्रित करने लगे। लोग यहां तक पहुंचा दिए।अध्यक्ष जी ने विधान सभा में सिविल सर्जनों को भी बुला लिए थे। सभी जगहों पर पुलिस व्यवस्था कायम कर दी गयी थी। 
आलोक कुमार

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