Monday 16 November 2015

24 घंटे तलवार लटकती रहती हैं पत्रकारों पर

दूसरों की आवाज बुलंद करने वाले.....


पटना। पूरा देश राष्ट्रीय प्रेस और पत्रकार दिवस मना रहा है। इस अवसर पर कहना है कि सरकार के द्वारा छोटे और मझौले अखबार को तवज्जों नहीं दिया जाता है। इसके कारण छोटे-मझौले अखबार के मालिकों के द्वारा पत्रकारों का शोषण किया जाता है। आज स्थिति यह है कि बड़े अखबारों में कार्यरत पत्रकार की नौकरी सरकार और अखबार के मालिकों पर निर्भर रहता है। राष्ट्रीय और मान्यता प्राप्त अखबारों को ही प्रमुखता देते हैं। इसका तात्पर्य है कि पत्रकारों की स्थिति बद से बदतर है।

जब सरकार को प्रेस और पत्रकारों की जरूरत रहती है तब ही प्रेस और पत्रकारों के कल्याण और विकास की बात की जाती है। जब सरकार की जरूरते खत्म हो जाती है। तब प्रेस और पत्रकारों की हित की बात नहीं की जाती है।

ग्रामीण स्तर के पत्रकारों की स्थिति खराब है। उन पत्रकारों को न्यूज भेजने को कहा जाता है। उसके एवज में शून्य ही मिलता है। बहुत हुआ तो आई कार्ड थमा दिया जाता है। ऐसे पत्रकार आई कार्ड को ही देखकर संतुष्ट होते रहते हैं।

कई अखबार के मालिकों ने पत्रकारों को बहाल किए। वेतनादि देने से बचने के लिए पत्रकारों से लिखा लिया कि शौकिया पत्रकारिता कर रहे हैं। इसके कुछ दिनों के बाद ही दूध में पड़े मक्खी की तरह बाहर निकाल दिए। कुछ अखबारों के ब्यूरो चीफ के द्वारा पत्रकारों को झांसे में डालकर पत्रकारिता करवाते हैं।

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।

No comments: