Saturday 14 May 2016

लूट का पर्याय बन गया है विघालय



पटना के डीएम से जांच करवानने की मांग


पटना। एक बार फिर 16 माह के अंतराल के बाद नये अंदाज में पटना राइट्स क्लेक्टिव का आगमन। इस बार विघालय स्थल का परिवर्तन कर दिया। जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंह को छोड़कर दीघा ग्राम पंचायत के पूर्व मुखिया जवाहर राय के रिश्तेदार धन्नू राय के मकान में फरवरी 2012 में राष्ट्रीय बाल श्रमिक विशेष विघालय खोला गया। यहाँ पर 8 माह पढ़ाने के बाद बाँसकोठी झोपड़पट्टी में बच्चों को पढ़ाया जाने लगा। इस बार पटना राइट्स क्लेक्टिव ने प्रति छात्रों की छात्रवृति में 50 रूपये की वृद्धिकर 150 रूपये कर दिये। फरवरी 2012 से अक्टूबर 2014 तक 50 विघार्थियों को पढ़ाया गया। छात्रवृति के नाम पर ठेंगा दिया दिया गया। 

नगीना दस की पत्नी सुशीला देवी का कहना है कि उनके तीन बच्चे पढ़े।निरंजन कुमार,राजन कुमार और अंजलि कुमारी। इसी तरह शंकर दास की पत्नी गीता देवी कहती हैं कि राजीव कुमार और रवि कुमार पढ़े। नामांकन के समय पटना राइट्स क्लेक्टिव नामक एनजीओ और बहाल टीचर ने बच्चों के परिजनों से बोले कि बच्चों का बैंक में खाता खुलेगा। उनके खातों में तीन साल तक प्रतिमाह 150 रू0 जमा होगा। कुछ दिनों के बाद साउथ इंडिया बैंक, बोरिंग रोड से फार्म लाया गया। चार तस्वीर देने की माँग की गयी। बैंक फार्म पर साइन लिया गया। इस बीच 6 माह पहले नामांकित छात्र-छात्राओं से सादा पेपर पर साइन भी लिया गया। इसके बाद यह भी कहा गया कि तुम लोग बैंक में जाकर रजिस्टर पर साइन कर दो। अभी भी यह कहा जा रहा है कि बाद में बच्चों को रूपये मिल जाएगा। बच्चों को झांसे में रखने वाले एनजीओ और टीचर 19 माह के बाद भी छात्रवृति दिलवाने में कामयाब नहीं हुए। वहीं अदालती हस्तक्षेप करने पर शिक्षकों को मासिक मानदेय मिल गया है। केवल बच्चे ही अटक गये हैं। 

1988 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति  के अनुसरण मेंः राष्ट्रीय बाल श्रम नीति  के अनुसरण में 1988 में बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए एनसीएलपी योजना आरंभ की गई। योजना सर्वप्रथम खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में काम करने वाले बच्चों के पुनर्वास पर ध्यान केंद्रीत करते हुए, अनुक्रमिक द्दष्टिकोण अपनाने का प्रयाल कर रहा है। इस योजना के तहत खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओ में नियुक्त बाल श्रमिकों का सर्वेक्षण आयोजित करने के बाद, बच्चों को इन व्यवसायों और प्रक्रियाओं से छुड़ाया गया और फिर उन्हें औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली की मुख्यधारा से जोंडने के उद्देश्य से विशेष स्कूलों में डाला। गया ।सरकार ने 1988 में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) स्कीम, देश के 12 बाल श्रम स्थानीय जिलों में काम करने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए शुरू किया था।

पदेन जिलाधिकारी से आग्रह है कि जाँच करा देंः एक छात्र को प्रतिमाह 150 रू0 छात्रवृति देने की घोषणा की गयी। एक छात्र को 12 माह में 1800 सौ रू0 छात्रवृति मिलना है। इस तरह 2 लाख 70 हजार रू0 चूना लगा दिया। इसकी विस्तृत जाँच करवाने की जरूरत है। वहीं वर्ष 2007-2010 के 2 साल और वर्ष 2012-2014 के 3 साल के छात्रवृति को 50 विघार्थियों के बीच में वितरित कर दें। प्रथम चरण 2007-2010 में 100 रू0 और द्वितीय चरण 2012-2014 में 150 रू0 छात्रवृति देने की घोषणा की गयी।

श्रम तथा रोजगार मंत्रालय में सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओ के अभिसरण पर एक कोर ग्रुप का गठन किया गया है ताकि सुनिश्चित हो सके कि बाल श्रमिक के परिवारों को उनके उत्थान के लिए प्राथमिकता दी जाती है। बाल श्रम के मूल कारण के रूप में गरीबी और निरक्षरता को ध्यान में रखते हुए सरकार बच्चों के शौक्षिक पुनर्वास के संपूरक के रूप में उनके परिवारों के आर्थिक पुनर्वास का अनुसरण कर रही है ताकि उन्हें आर्थिक हालातों से मजबूर होकर अपने बच्चों को काम पर ण भेजना पड़े। मंत्रालय द्वारा काम से छुड़ाए गए बच्चों को भोजन और आश्रय प्रदान करने में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय जैसे विभिन्न मंत्रालयों की आश्रय गृह आदि योजनाओं के जरिए।

एनसीएलपी स्कुल के बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के लिए, शिक्षकों के प्रशिक्षण, सर्व शिक्षा अभियान के तहत पुस्तक आदि की आपूर्ति, और एनसीएलपी बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत मुख्य धारा में जोड़ने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यम से इस मंत्रालय के संपूरक प्रयासों के रूप में विविध सकारात्मक सक्रिय उपाय किए जा रहे हैं।

आर्थिक पुनर्वास के लिए विभिन्न आय और रोजगार पैदा करने वाली योजनाओं के तहत इन बच्चों को आवृत करने के लिए ग्रामीण विकास, शहरी आवास और गरीबी उन्मूलन,पंचायती राज मंत्रालयों के साथ अभिसरण।

राज्य श्रम विभाग से प्रत्येक राज्य में एक अधिकारी को मानव तस्करी विरोध यूनिट (एएचटीयू) के समान उस राज्य में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ समन्वयन के लिए संयोजक अधिकारी के रूप में नामित किया गया है ताकि राज्य में बच्चों की तस्करी की रोकथाम की जा सके।सीबीआई नोडल तस्करी विरोधी एजेंसी है।

बच्चों की तस्करी के संबंध में जागरूकता पैदा करने व उसे प्रतिबंधित करने के लिए रेल मंत्रालय के साथ अभिसरण।

इसके अलावा मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, एसआरओ दिल्ली के सहयोग से संयुक्त राष्ट अमेरिका के श्रम विभाग द्वारा वित्त पोषित भारतीय माँडल के समर्थन हेतु बाल श्रम के प्रति एक पायलट परियोजना अभिसरण दृबच्चों की तस्करी और प्रवास सहित खतरनाक बाल श्रम की रोकथाम और उसके उन्मूलन में योगदान देने के उद्देश्य से लागू किया जा रहा है।परियोजना 42 महीनों की अवधि के लिए बिहार, झारखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश और उड़ीसा के दो जिलों को आवृत कर रहा है। यूएसडीओएल का दाता अंशदान 6,850,000 अमेरिकी डॉलर।

रेलव कर्मचारियों भी संदिग्ध प्रवासी और तस्करी बच्चों के साथ निपटने के लिए अवगत है

सरकार मानव संसाधन विकास, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, शहरी आवास एवं ग्रामीण गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण विकास, रेलवे, पंचायती राज संस्थाओं आदि जैसे विभिन्न  मंत्रालयों की योजनाओं के अभिसरण की ओर विविध सक्रीय कदम उठा रही है, ताकि बाल श्रमिक और उनके परिवारों को इन मंत्रालयों की योजनाओं के लाभों के तहत शामिल कर सकें।

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना। 

No comments: