पटना। संविधान के तहत केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति को आरक्षण प्राप्त है। इसका लाभ निकोलस राणा और सलोमी निकोलस नहीं उठा सकें। अपने परिजनों के राह पर चलकर निकोलस और सलोमी के 6 बच्चे भी नहीं उठा सकें। 4 लड़की और 2 लड़कों में से कोई भी मैट्रिक उर्त्तीण नहीं हो सकें। और तो और परिजनों के अनुशासन में भी नहीं रहें। मनमौजी ढंग से अन्तर धार्मिक/अन्तर जाति विवाह कर लिये। सभी माँ-बाप को छोड़ गये। हां, एक छोटका लड़का सहयोग करता है। बावजूद इसके माँ-बाप गरीबी के दलदल में से नहीं निकल सकें। हाल यह है कि गिरकर हाथ तोड़वा बैठी हैं सलोमी निकोलस। तब निकोलस ने राशि के अभाव में संत जेवियर उच्च विद्यालय के आसपास रिक्शाचालक के पास सलोमी को निकोलस ले गया। रिक्शाचालक टूटी हड्डी को बैठाने का कार्य करता है। दोनों दम्पति का दुर्भाग्य रहा कि रिक्शाचालक से मुलाकात नहीं हो सकी। गांधी मैदान से पैदल चलकर आने के बाद मखदुमपुर मोहल्ले के पास बैठ गये। सलोमी दर्द से बेहाल है। एक हाथ से दूसरे हाथ को दिखाती है कि काफी दर्द महसूस कर रही हैं।
आखिरकार कौन हैं निकोलस राणा? जमुई जिले के चकाई प्रखंड का रहने वाले हैं निकोलस राणा। अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं। गाँवघर में मजदूरी करने के बाद गाँवघर से निकलकर पटना आ गये। 1969 में राजधानी में आये थे। इसके बाद निकोलस का विवाह सलोमी से हुआ। इस बीच निकोलस राणा को संत जेवियर उच्च विद्यालय में काम मिल गया। अपने बच्चों के साथ निकोलस और सलोमी मरियम टोला के आसपास रहने लगे। इसी क्षेत्र में अभी भी रहते हैं।
कैथोलिक मिशनरी हॉस्पिटल में इलाज करवाने जाते नहीं हैं? संत जेवियर उच्च विद्यालय में कार्यरत थे। यहाँ से 10 जून,2015 में अवकाश ग्रहण किये। इनको भविष्य निधि कोषांग से 1648 रू0 पेंशन मिलता है। इसी अल्पराशि से भोजनादि पर खर्च करते हैं। अभी राशि नहीं है कि जाकर मिशनरी हॉस्पिटल में इलाज करवा सकें। हाँ, यह जरूर है कि फादर जोन डिमेलो कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल में कार्यरत हैं। येसु समाज के फादर हैं। वे अच्छी तरह से जानते और पहचानते हैं। मगर इलाज करवाने में पीछे रह जाते हैं। रूपया खर्च करने को कहते हैं। रूपया है ही नहीं ताकि इलाज करवा सकें। इसी लिए रिक्शाचालक से हाथ बैठाने गये थे। उससे मुलाकात नहीं हो सकी।
हाँ, मैं रोमन कैथोलिक हूँः मैं रोमन कैथोलिक हूँ। मगर मिशनरी हॉस्पिटल तक पहुँच नहीं हैं। अब कैथोलिक की पहुँच केवल चर्च के अंदर तक ही है। वहीं पर फादर सांक्रामेंटल वाइन में डूबोकर परमप्रसाद वितरण करते हैं। उसे ही ग्रहण करके संतोष करना पड़ता है।
आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।
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