Tuesday 5 April 2022

आज से चैती छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू

पटना.आज से चैती छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू हो गया है.इस साल के चैती छठ 5 अप्रैल से शुरू होकर 8 अप्रैल को उगते सूरज को जल देकर समाप्त होगा. ध्यान दें चैत में मनाए जाने वाले चैती छठ व्रत के नियम कार्तिक में मनाए जाने वाले छठ के समान ही होते हैं. छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ 5 अप्रैल से होगी. वहीं 6 अप्रैल को खरना के दिन खीर और रोटी का भोग लगेगा. 7 अप्रैल को डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा. वहीं 8 अप्रैल को उगते सूरज को अर्घ्य देकर इस पर्व का समापन किया जाएगा.

पांच अप्रैल से नहाय-खाय में लौकी की सब्जी और अरवा चावल के भात बना कर छठ व्रती प्रसाद ग्रहण कर नहाय-खाए से चार दिवसीय अनुष्ठान का संकल्प लेंगे. आठ अप्रैल शुक्रवार को उदय मान सूर्य भगवान को अघ्र्य अर्पित कर महा पर्व का समापन किया जाएगा. चैती छठ में नहाय खाय के दिन सम्पूर्ण स्वच्छता का ध्यान रखते हुए व्रत के लिए गेहूं और चावल को धोकर सुखाया जाता है.छठ पूजा में खरना के प्रसाद का विशेष महत्व माना गया है खरना प्रसाद में छठ व्रती आम के लकड़ी से मिट्टी के चूल्हे पर ईंख के कच्चे रस, गुड़ , अरवा चावल का खीर बनाकर छठ मैया को भोग लगा महा प्रसाद ग्रहण करती हैं। तथा घर परिवार के लोगों को तथा आगंतुकों को महाप्रसाद देती है.

कुर्जी में सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार राय के द्वारा चैती छठ व्रतधारियों के बीच में कद्दू आदि वितरित किया.बताते चले कि कुर्जी में कार्तिक छठ के अवसर पर पटना नगर निगम की उप महापौर रजनी देवी के द्वारा छठ व्रतधारियों के बीच में छठ साम्रगियों के साथ साड़ी भी वितरित किया गया था.उस सिलसिला को जारी रखा गया.महापौर सीता साहू और उप महापौर रजनी देवी ने छठ व्रत की महिमा पर विस्तार से चर्चा करते हुए व्रतियों को पर्व की शुभकामनाएं दी हैं.

चार दिन का यह पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता हैं. इसे उत्तर भारत में सबसे बड़ा त्यौहार भी माना जा सकता हैं.इस पर्व मे गंगा स्नान या स्थानीय नदी या तालाब का महत्व सबसे अधिक होता हैं.जिसमे खड़े होकर यह पूजा संपन्न की जाती है. पूजा मे छठ देवी जो कि सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है.

इस पूजा को घर की महिलायें एवम पुरुष दोनों करते हैं. पत्नी बीमार है तो पति व्रत रहते है. इसमें स्वच्छ एवं नए कपड़े पहने जाते हैं जिसमे सिलाई न की गयी हो जैसे महिलायें साड़ी एवम पुरुष धोती पहन सकते हैं. इन चार दिनों में व्रत करने वाला धरती पर सोता हैं. जरुरत पर कम्बल या चटाई का प्रयोग कर सकता हैं.

इन दिनों घर में प्याज लहसन एवम माँस मंदिरा का प्रयोग वर्जित होता है और सामान्यता खाना घर से बाहर बनाता है.सामान्य घरो मे बाटी चोखा बनता दीखता है.

यह एक चार दिवसीय त्यौहार हैं

1- नहाय खाय का यह पहला दिन होता हैं. यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता हैं. इस दिन सूर्य उदय के पूर्व पवित्र नदियों का स्नान किया जाता हैं इसके बाद ही भोजन लिया जाता हैं जिसमे कद्दू खाने का महत्व है.

2- लोहंडा और खरना यह दूसरा दिन होता हैं जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी कहलाती है. इस दिन निराहार रहते हैं रात्रि में खिरनी खाई जाती हैं और प्रसाद के रूप में सभी घर वाले इसे ही खाते है। इस दिन आस पड़ौस एवं रिश्तेदारों को भी न्यौता दिया जाता हैं.

3- संध्या अर्घ्य यह तीसरा दिन होता हैं जिसे कार्तिक शुक्ल की षष्ठी कहते हैं. इस दिन संध्या में सूर्य पूजा कर ढलते सूर्य को जल चढ़ाया जाता हैं जिसके लिए किसी नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर टोकरी एवम सुपड़े में देने की सामग्री ली जाती हैं एवम समूह में भगवान सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता हैं.इस समय दान का भी दिया जाता है. इस दिन घरों में प्रसाद बनाया जाता हैं जिसमे लड्डू का अहम् स्थान होता हैं.

4- उषा अर्घ्य का यह अंतिम और चैथा दिन  सप्तमी का दिन होता हैं। इस दिन उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता हैं एवम प्रसाद का वितरित किया जाता हैं.

यह चार दिवसीय व्रत बहुत कठिन साधना से किया जाता हैं. जिसमे साफ सफाई का विशेष ध्यान रखते है. इसे हिन्दुओ का सबसे बड़ा व्रत कहा जा सकता  हैं. इस त्यौहार पर नदी एवम तालाब के तट पर मेला लगता हैं. इसमें छठ पूजा के गीत गाये जाते हैं. जहाँ प्रसाद वितरित किया जाता हैं. और लोग खास तौर पर महिलाये बिना भेद भाव के प्रसाद अपने आँचल मे मांगती भी है.

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