Wednesday 3 May 2017

रांची के युवा फिल्म मेकर हैं अनुज कुमार






रांची।  रांची के युवा फिल्म मेकर हैं अनुज कुमार। एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई है। इसका शीर्षक है ‘बिलोंगिंग टू अनटचेबल गॉड’। राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर फिल्म दिखलायी गयी। यह डॉक्यूमेंट्री दूरदर्शन के फैलोशिप के अंतर्गत बनाई गई है। इसमें अनुज कुमार डायरेक्टर और एडिटर की भूमिका में है। इस डॉक्यूमेंट्री की कहानी पटना से 50 किलोमीटर दूर विक्रम और पालीगंज के मुसहर समुदाय की महिला रामकली देवी और उनके समुदाय की है। ये लगातार जाति प्रथा के खिलाफ लड़ रहे हैं, ताकि उनका समाज भी विकास की मुख्यधारा से जुड़ सके। इस फिल्म में उनके संघर्ष को दिखाया गया है। 

6 महीनों में बनी 26 मिनट की फिल्मः फिल्म के डायरेक्टर अनुज कुमार बताते हैं कि यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म 26 मिनट की है। इसे बनाने में 6 महीने लगे। 15 लोगों की टीम ने लगातार काम किया। इसकी शूटिंग में गांव के लोगों ने भी बहुत सहयोग किया। इस फिल्म की मुख्य भूमिका में हैं रामकली देवी।

प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यक्षेत्र हैः दाता संस्था एक्शन एड के सहयोग से विक्रम और पालीगंज में कार्य हुआ है। आरंभ में समाज के हाशिए पर रहने वाले मुसहर समुदाय के लोग बंधुआ मजदूर होते थे। संस्था में जुड़े रहने के समय में उदय नारायण चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, बिहार विधान सभा द्वारा बंधुआ मुक्ति अभियान संचालित था। इस अभियान से अनेकों मुसहर समुदाय के लोग मुक्त हुए। सरकार की ओर से मुक्त बंधुआ मजदूरों को राहत नहीं दी गयी। रामकली देवी कहती हैं कि मालिक के पास हलवाहा के कार्य से मुक्ति मिलने के बाद किसान से पट्टा, मालगुलजारी, बट्टइया, मनी आदि पर खेत लेकर खेती करने लगे। अभी (शुटिंग होने के समय में)12 कट्टा खेत में धान और 2 कट्टा में आलू रोपे हैं। पहले पहल एकल खेती करते थे, बाद में सामुहिक खेती करने लगे। 

महिला एकता मंचः हमलोग मिलकर महिलाओं को संगठित करके बचत समूह निर्माण किये। बचत समूह के माध्यम से हल्के दर ब्याज सहित ऋण देते हैं। अब महाजनों के चंगूल में जाना नहीं पड़ता है। महिला शक्ति के बल पर बाद में सामूहिक खेती के अनाज से अनाज बैंक निर्माण किये। इस बैंक में 12 मन अनाज को भंडारण करने की क्षमता है। शादी के समय में और काम नहीं मिलने के समय आश्विन-कार्तिक में सदस्यों को अनाज से मदद कर देते हैं। एक किलो अनाज के बदले सवा किलो अनाज लेते हैं। हद तो उस समय हो जाता है कि आर्फत समय में लघु किसान भी अनाज ले जाते हैं। इसके बाद बकरी पालन शुरू किया गया। बच्चा होने पर एक बार अन्य सदस्यों को देना पड़ता है। इस तरह सभी सदस्यों के पास अपनी बकरी है। इसे बकरी बैंक कहते हैं। 

प्रारंभिक आपबीती में यूँ बयान कियाः खेत से अनाज घर तक पहुंचा देते थे। इसके बाद हमलोग अछूत बन जाते थे। मालिक के सामने चप्पल पहनकर बात नहीं कर सकते और न ही परिसर में ही जा सकते। चप्पल को उतारकर ही जाना पड़ता और बात करनी पड़ती। खेत में कार्य करने के दरम्यान खाना में सत्तू दिया जाता था। बर्त्तन नहीं देने के कारण गमच्छा में ही सत्तू सान लेते थे। कुछ ही समय में खाकर और कुआं का पानी पीकर काम में लग जाना पड़ता। गांव के दक्षिण और खेत के किनारे झोपड़ी में रहते। भगवान भास्कर के निकलने के पहले ही खेत में काम शुरू कर देते। भगवान दिवाकर के जाने के बाद घर जाते। सही मायने में शोषण के दलदल में फंसे थे। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, धार्मिक शोषण किया जाता रहा। कर्ज में जन्म लेते और कर्ज में ही मर जाते। संसार में एक रावण प्रसिद्ध हैं। यहां तो अनेकों रावण के रूप में हैं। महाजन, वकील, पुलिस, डाक्टर और पंडित। सभी एक दूसरे के पूरक और सहायक हैं। अब इनसे मुक्ति मिली है। 

अब कर्तव्य के साथ अधिकार का भी बोध होने लगाः हम राद्योपुर के निवासी जागरूक हो गये हैं। रामकली देवी कहती हैं कि भूमि अधिकार की मांग को लेकर पदयात्रा में भाग ले रहे हैं। पटना से दिल्ली तक आंदोलन करते हैं। जनादेश 2007 में मेरे पतिदेव ग्वालियर से दिल्ली तक पदयात्रा किये। जन सत्याग्रह 2012 में खुद ही ग्वालियर से मोहम्बत की नगरी आगरा तक पदयात्रा की है। यहां पर केन्द्रीय सरकार के साथ समझौता वार्ता के बाद पदयात्रा समाप्त की गयी। अनिता देवी कहती हैं कि स्कूल से ड्रेस के लिए रकम नहीं दी गयी। टीचर जबर्दस्ती करती थीं कि ड्रेस पहनकर आओं। आखिर कैसे ड्रेस पहनकर बच्चे स्कूल जाएंगे। इसको लेकर बैठक की गयी। सीधे हमलोग टीचर से भेट किये। स्कूल के रजिस्ट्रर देखे और उपस्थिति से टीचर को अवगत करायें। बच्चे नियमित स्कूल जाते हैं। तब जाकर स्कूल से ड्रेस खरीदने के लिए रकम दी गयी। बच्चों के कहने पर टीचर से कह दिये कि स्कूल में भेदभाव होता है। इसका खात्मा करें नहीं तो आंदोलन के लिए तैयार रहें। 

सामुदायिक भवन की जमीन को लेकर पिटायीः इस पंचायत के मुखिया रामजन्म पाण्डेय के इशारे पर जमीन रजिस्ट्री करवाकर आते समय पिटायी कर दी गयी। सामुदायिक भवन बनने नहीं देना चाह रहे थे। इस मसले को थानाध्यक्ष ने सुलझाया। अगर रामकली देवी चुनाव लड़ती हैं और चुनाव में जीतती हैं तब जाकर सामुदायिक भवन बनेगा। गांव के प्रतिद्वदी को रामकली ने समुदाय के मत से चारों खाने चित कर दी और सामुदायिक भवन निर्माण करने की रास्ता साफ कर दी। अन्त में कांति देवी के सामूहिक क्रांतिकारी गान‘ भइया हो भइया मजदूर भइया मिलके बदल द हिन्दुस्तान....। के साथ कहानी खत्म। 

आलोक कुमार

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