पटना।
इस नौजवान को
मिर्गी रोग है।
जब वह 5 साल
का था। मिर्गी
का दौरा पड़ने
के बाद परिवार
वाले परेशान हो
उठे। अपने लाल
को सीने में
चिपकाकर कुर्जी होली फैमिली
हॉस्पिटल ले गए।
चिकित्सकों ने मिर्गी
रोग करार करके
दवा-दारू शुरू
कर दिए। उसी
समय से बर्बाद
होने का सिलसिला
शुरू हो गया।
पिताश्री की अकाल
मौत हो गयी।
मां विधवा हो
गयी। मां आशा
कार्यकर्ता बन गयी।
सेवा करने के
नाम पर बेटे
की दवा करने
लायक भी रकम
नहीं मिल पाती
है। नियमित दवा-दारू नहीं
होने से मिर्गी
रोग रंग दिखाना
शुरू कर दिया।
इसके रंग दिखाने
से परिवार वाले
दवा देने के
बदले में जंजीर
में जकड़ दिए
हैं। इस अमानवीय
व्यवहार से मिर्गी
रोगी को कौन
निजात दिलवाएगा? यह
यक्ष सवाल बनकर
सामने आया है।
महानगर
पटना शहर से
निकट है गोसाई
टोला गांव है।
यह पश्चिम मैनपुरा
गा्रम पंचायत के
अधीन पड़ता है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सबलपुर,(पटना सदर
प्रखंड ) में मुन्नी
देवी आशा कार्यकर्ता
हैं। मुन्नी देवी
के पतिदेव का
नाम रामलगन राय
हैं। रामलगन राय
और मुन्नी देवी
के अविनाश कुमार
(18 साल) और टिंकल
कुमार (15 साल ) पुत्र हैं।
दुर्भाग्य से दोनों
के पुत्र को
मिर्गी रोग है।
जब 5 साल का
अविनाश और टिंकल
13 साल का था।
तब रोग की
चपेट में आ
गए। इस बीच
रामलगन राय की
मौत 1997 में हो
गयी। इसके बाद
अकेले मुन्नी देवी
के सिर पर
बोझ आ गया।
कुर्जी होली फैमिली
हॉस्पिटल के सामुदायिक
स्वास्थ्य एवं ग्रामीण
विकास केन्द्र में
संचालित सिलाई केन्द्र से
सिलाई का प्रशिक्षण
प्राप्त किया। अपने घर
में सिलाई करने
लगी। इसी से
जीविकोपार्जन करने लगी।
इसी से प्राप्त
रकम से दवा-दारू भी
करती रही। 2011 में
विधवा मुन्नी देवी
को आशा कार्यकर्ता
बनाया गया। तीन
माह से सेवा
करने का दाम
नहीं मिला है।
आलोक
कुमार
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