पटना। नाटे कद के हैं
लोक गायक सुरेन्द्र कुमार यादव। खुद ही हार्मोनियम पर
संगत करते और गाते भी
हैं। भोजपुरी गाना बनाने एवं गाने में महारत हासिल कर चुके हैं।
गायन और बजायन के
बीच में एल.एल.बी.
कर लिये। काली कोर्ट में सजधज कर वकील के
पेशे में जूट गये। गायन और बजाने में
शौहरत हासिल करने वाले लोक गायक वकील के पेशे में
धूमिल पड़ते चले गये। किसी तरह के ऑफर आने
में काली कोर्ट को खुट्टी में
टांगकर निकल जाना पड़ता था। एक व्यक्ति दो
नाव पर पैर नहीं
रख सकें। आखिरकार काली कोर्ट को टा-टा-बाई-बाई करके शोहरत वाले फील्ड में कमद रख लिये।
जी हां, दीघा
के प्रसिद्ध मालदह आम वाले क्षेत्र
में रहते हैं लोक गायक सुरेन्द्र कुमार यादव। यह क्षेत्र दीघा
थाना में है। इनका निवास स्थान है बाटागंज,रामजीचक
मोहल्ला। चौकाने वाली बात है कि थाने
के कुछ ही दूरी पर
आज भी धीमी-धीमी
चलकर मौत लाने वाली ‘स्मैक बिकती है। गैरकानूनी स्मैक का धंधा करने
वाले सौदागरों का धंधा फलफूल
और चमक रहा हैं। ऐसे सौदागरों द्वारा नौजवानों को सहजता से
जाल में फांस लेने का काम किया
जाता हैं।
जी हां, जहां
बुराई है वहां अच्छाई
भी है। इस अच्छाई में
है संगीत मंडली। नौजवान कलाकारों को समेटकर संगीत
मंडली बनायी गयी है। इसमें महत्वपूर्ण योगदान कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल में कार्यरत रहे चन्द्रकेत चौधरी को जाता है।
जो लगातार प्रयास करते रहे हैं इस संगीत मंडली
को शिखर पर पहुंचाने को।
वहीं हॉस्पिटल में आयोजित मजदूर दिवस और विश्वकर्मा पूजा
के अवसर पर बुलावा भेजकर
संगीत मंडली के सदस्यों को
अभ्यास करने का मौका दिया
जाने लगा। कोई पांच सौ कर्मचारियों के
बीच में संतीत और गीत पेश
करना। श्रोताओं से भरपूर ताली
बटोरना। इसी संगीत मंडली में है लोक नायक
सुरेन्द्र कुमार यादव। हार्मोनियम बजाते और मधुर कंठ
से गाना भी गाते हैं।
कई दफा संगीत मंडली द्वारा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर
गीत-संगीत पेश किया जा चुका है।
इसी तरह के फन के
चलते राजनीतिज्ञों के चहेते भी
बन गये हैं लोक गायक सुरेन्द्र कुमार यादव। राजद के कार्यक्रमों में
अवश्य ही संगीत मंडली
और लोक गायक की उपस्थिति अनिवार्य
हो जाता है। अब तो संगीत
मंडली के साथ ई
टीवी बिहार के कार्यक्रमों में
भी शिरकत करने लगे हैं। होली के अवसर पर
होलिका गा रहे हैं
लोक गायक सुरेन्द्र कुमार यादव।
कमजोर परिवार के सदस्य होने
के बावजूद भी एलएलबी किये।
दानापुर अनुमंडल कोर्ट में वकील के पेशे से
जुड़ गये। वकील पेशागीरी में रम नहीं सके।
परिवार की स्थिति से
गमगीन होने लगे। आखिर वकील के पेशे को
छोड़कर संगीत और गायन की
ओर पग बढ़ा लिये।
फिलवक्त एक स्कूल में
संगीत शिक्षक हैं। इसी से दाल-रोटी
चलाते हैं।
आलोक कुमार
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